जापान का खौफ जैतापुर में दिखा


जयपुर। महाराष्ट्र के जैतापुर में स्थापित किया जाने वाला न्यूक्लियर पॉवर प्लांट शुरू से ही विवादों में रहा है लेकिन पिछले दिनों जापान के फुकोशिमा न्यूक्लियर प्लांट में हुए परमाणु हादसे और
फिर कर्नाटका के कैगा में बजे स्मोक अलार्म ने जैतापुर में भी खतरे की घंटी बजा दी है। प्लांट के विरोध में उतरे लोगों पर पुलिस फायरिंग की घटना के बाद जैतापुर एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है।

पिछले दिनों प्रधानमंत्री का यह बयान आया था कि हम परमाणु ऊर्जा के विकल्प को दरकिनार नहीं कर सकते। फुकोशिमा परमाणु हादसे के बाद उन्होंने देश के सभी न्यूक्लियर पॉवर प्रोजेक्टों की सुरक्षा की समीक्षा करने का भी भरोसा दिलाया था बावजूद इसके जैतापुर
प्रोजेक्ट की सुरक्षा को लेकर अभी भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं।

पहला सवाल

जैतापुर पॉवर प्लांट का विरोध करने वाले सवाल कर रहे हैं कि भूकंप जोन 4 में आने वाले इस क्षेत्र को जोन 3 में क्यों दर्शाया जा रहा है? खुद जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार यहां 1985 से 2005 के बीच क्षेत्र में 92 भूकंप आ चुके हैं। ऎसे में समुद्र के किनारे बनने वाले जैतापुर प्रोजेक्ट में भी जापान के फुकोशिमा परमाणु हादसे जैसी आशंका है।

दूसरा सवाल


फ्रेंच परमाणु ऊर्जा कंपनी अरेवॉ जैतापुर में जो 6 न्यूक्लियर रिएक्टर लगाने जा रही है, वो इवोल्योशनरी युरोपियन प्रेशेराइज्ड रिएक्टर (ईपीआर) टेक्नोलॉजी पर आधारित हैं।यह टेक्नॉलोजी पानी पर आधारित साधारण रिएक्टरों से तीन गुना महंगी है। ईपीआर टेक्नोलॉजी पर बने रिएक्टर इससे पहले दुनिया में कहीं इस्तेमाल नहीं किए गए हैं और यूके एवं फिनलैण्ड की नियामक एजेंसियों ने इन्हें सुरक्षित नहीं माना है। इन रिएक्टरों में फ्रांस में इस्तेमाल किए गए परमाणु ईंधन को पुन: प्रसंस्करित कर उपयोग किया जाएगा। यही नहीं अरेवॉ पर फ्रांस में नदियों को प्रदूषित करने को लेकर भी मुकदमा चल रहा है।

तीसरा सवाल


जिस इलाके में प्लांट लगाया जा रहा है वहां के समुद्र से हर साल 10,000 टन मछलियां पकड़ी जाती हैं, जो यहां के लोगों की आजिविका का मुख्य जरिया है। जैतापुर प्लांट बनने के बाद इससे समुद्र में प्रतिदिन 60 लाख क्युबिक मीटर गर्म पानी छोड़ा जाएगा, जिससे समुद्र में रहने वाले जीव-जंतु मर जाएंगे। इसके अलावा समुद्र में बनने वाले 2300 मीटर लंबे पत्थर के बांध से विजयदुर्ग क्रीक पर रेत जम जाएगी जिससे पानी के प्राकृतिक प्रवाह पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा।

चौथा सवाल


रेडियोएक्टिव कचरा भी एक बड़ा सिरदर्द साबित होगा, वैसे भी ईपीआर रिएक्टर से साधारण रिएक्टर से 4 गुणा ज्यादा रेडियोएक्टिव कचरा निकलता है। जैतापुर न्यूक्लियर पॉवर प्लांट से प्रतिवर्ष 300 टन कचरा निकलेगा जिसका निपटारा कैसे होगा ये पूरी तरह साफ नहीं है। रेडियोएक्टिव कचरे क ो पूरी तरह नष्ट होने में सदियां लग जाती हैं। इस ठोस कचरे को लीड के पात्रों में भरकर जमीन में गाड़ दिया जाता है, जिससे भूजल के दूषित होने का खतरा बना रहता है।

पांचवा सवाल

इस प्रोजेक्ट के लिए जिन 2375 परिवारों क ी जमीन अधिग्रहित की जा रही है उनमें से ज्यादातर अपनी जमीन देने को तैयार नही हैं। जनवरी 2011 में प्रभावित परिवार के एक सदस्य को नौकरी और 10 लाख रूपए देने का प्रस्ताव दिया गया परंतु ज्यादातर परिवारों ने इस ऑफर को ठुकरा दिया है।

क्या होगा फायदा

जैतापुर में लगाए जाने वाले एटमी पॉवर प्लांट में कुल 6 न्यूक्लियर रिएक्टर लगाए जाएंगे जिनमें से प्रत्येक की क्षमता 1650 मेगा वॉट होगी। इस प्लांट से कुल 9900 मेगावॉट बिजली पैदा होगी, बिजली उत्पादन क ी दृष्टि से ये दुनिया का सबसे बड़ा न्यूक्लियर पॉवर प्लांट होने जा रहा है।

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