भट्टा-पारसौल: मायाराज की बर्बरता का स्मारक
अपनी गाड़ी मुख्य सड़क पर छोड़ हम साईकिलों पर लिफ्ट लेकर भट्टा-पारसौल पहुंचे... करीब तीन घंटे गाँव में घुमते रहे कोई भी हमसे बात करने को राज़ी नहीं हुआ, गाँव के पुरुष या तो भाग गए हैं या लापता हैं, सिर्फ औरतें, बच्चे और बूढ़े थे और उनके चेहरे पर भय साफ़ नज़र आ रहा था. आख़िरकार एक बूढी औरत ने मायाराज की बर्बरता की जो कहानी हमें सुनाई वो रोंगटे खड़े कर देने वाली थी... उसके बेटों और पोते को पुलिस 10 दिन पहले ले गयी थी और उनकी अब तक कोई खबर नहीं थी, घर का लगभग हर सामान तोड़ दिया गया था, महिलाओं को बाल पकड़ कर घसीटा गया और बुरी तरह मारा गया, यहाँ तक की लाठियों से पीटा गया. गाँव के लगभग हर घर की यही कहानी है, बिजली के तार टूटे पड़े हैं, गाँव की सीमा पर अभी भी इतनी पुलिस है जैसे यहाँ जंग छिड़ने वाली हो...
यहाँ के हालात युद्ध के बाद उजड़े गाँव जैसे हैं. ये सब देख सुनकर यकीन नहीं हुआ की ये गाँव स्वतंत्र भारत का हिस्सा है, सोचिये अगर केंद्र सरकार की नाक के नीचे NCR में ऐसा हो सकता है तो बस्तर और धिनकिया में क्या होता होगा. अब ऐसे में ये मासूम लोग नक्सली नहीं बनेंगे तो क्या करेंगे??? हैरानी इस बात पर भी हो रही है की मीडिया में आई कुछ रिपोर्ट्स कहती हैं की वंहा तो ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, क्या ये लोग अपने AC studios से बाहर नहीं निकलते??? हाँ शायद वंहा 74 हत्याएं या बड़े पैमाने पर बलात्कार न हुए हों पर जो भी हुआ है वैसा तो शायद अंग्रेजों के राज में भी नहीं हुआ होगा...
यहाँ जो हुआ है वो हमारे देश के लोकतंत्र और एक सभ्य समाज होने पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है.
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